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पोखर बनाम सरकार

badalte rishte
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सूख रहा जल का पोखर,खुद ताप बढ़ाकर,

कुमुद कमल सरिसर्पों का,संताप बढ़ाकर/

गरल कंठ से बह निकला,उन्माद दिखाकर,

शुष्क सरोवर में रहने, की राह दिखाकर//

 

विहग पशु ढोर चमगादड़,कर रहे जलपान,

सूख रहे पोखर सम ही,सुखे उनकी जान /

वृक्ष वृन्द खड़े किनारे,चूर मद अभिमान,

टूट पर्ण जब गिरे धरा,घटा अरु सब मान//

 

निरीह मृग यह देख रहा,सब आँख बिछाकर,

कोई चपल सा कूद रहा,अरु मौज मनाकर/

कूपमंडूक  बैठ गये,  सब  आस लगाकर,

क्या करना मितवा इनको,अब याद दिलाकर//

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