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आज सबेरे से दिल में १४ सितम्बर को हिंदी दिवस पर क्या लिखूं यही सोच रहा था. आज देश कि आजादी के साढे छह दशक बीत गये है और आज भी संसद अंग्रेजी में किये कार्य को ही उत्कृष्ट मान रहा है. हिंदी उसकी सोच में कहीं है ही नहीं. हो भी तो कैसे? पहले अंगरेजो से गलबहियां करने वाले जवाहरलाल नेहरू प्रधानमन्त्री रहे कैसे वे इस देश में हिंदी को राष्ट्रभाषा बनने देते ? सो उन्होंने वही किया जों उन्हें करना चाहिए था. हिंदी को राष्ट्रभाषा बनने से रोकने के लिए उन्होंने संविधान में एक पंक्ति लिखवा दी जब तक कोई एक भी राष्ट्र हिंदी के लिए सहमत नहीं होगा हिंदी को राष्ट्र भाषा नहीं बनाया जा सकता. उसके बाद तो लगातार उनकी अगली पीढ़ियों ने उस परम्परा को निभाया और आज कि यदि बात करें तो एक विदेशी महिला के तलुए चाटने वाले नेताओं से कैसे उम्मीद करें कि वे उसके खिलाफ कोई कदम उठाएंगे और देखिये आज हिंदी दिवस पर अंग्रेजी महिला के गुलामों ने हिन्दुस्तान के लिए दिया महँगी रसोई और महंगे यातायात का तोहफा.
हिंदी भाषा रही, छन्दों से मालामाल /
वीर शाहिदों ने भी,बैठाया इसको भाल/*
*/देश हुआ आजाद,नेता ना समझे मोल /
देश की संसद में, फूटे अंग्रेजी बोल/*
*/अपने ही देश में, फिर हिंदी हुई गुलाम /
अंग्रेजी में हुए , सारे सरकारी काम/*
*/दोयम दर्जा इसे,अंग्रेजी समझे शान /
पाठशाला में भी,इसे मिला नहि सम्मान/*
*/हिंदी भाषी सदा, है कहलाता नादान /
जब तक ना हो उसे,धुर अंग्रेजी का ज्ञान/*
*/बिन अंग्रेजी नहीं,मिले कोई रोजगार /
अंग्रेजों के यहाँ,हिंदी बन गइ बेगार/*
*/फिरभी हम देश में,मना रहे दिवस हिंदी /
मन अभिलाषा लिए,यह बने भाल कि बिंदी/*
*/
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