badalte rishte
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उम्र पिता संग बीत रही, पर पिछला किस्सा याद रहा,
साथ बिताये हर पल का इक इक हिस्सा याद रहा.
बाजारों में त्योहारों पर जाना संग पिता के याद रहा,
पहन नए कपडे कुछ दिन फिर यूँ ही इठलाना याद रहा,
शैतानी कर, डरकर पिता से घर में छुप जाना याद रहा,
और पकडे जाने पर पिता से पिटना पिटाना याद रहा.
तनय वेदना को पढकर मरहम उनका लाना याद रहा,
भूल सका ना परिणामों पर मुस्काना उनका याद रहा,
बचपन के लम्हे लम्हे पर साथ पिता का याद रहा,
और तरुणाई में भी काँधे पर हाथ पिता का याद रहा.
दूर गया मै कुछ दिन उनसे संस्कार उन्ही के याद रहा,
सारा त्याग परिश्रम उनका हर मुस्कानों में याद रहा,
घोर अँधेरे में भी बढ़कर उनका दीप जलाना याद रहा,
डाट भले सौ खाई फिरभी ज्ञान पिता का याद रहा,
खुद पिता बन भूल ना पाया, मान पिता का याद रहा,
नित प्रातः स्मरण माता का, सम्मान पिता का याद रहा.
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