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वाह! री सरकार!

badalte rishte
badalte rishte
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एक परिवार दो सरदार

सारे नाकाबिलों की भरमार,

तीन वर्ष देश बीमार,  

अरबों कालाधन और पंगु सरकार,

किसे श्वेत-पत्र की दरकार,

हो रहा अत्याचार पर अत्याचार,

देश की जनता है बेबस लाचार,

नौ नगद तेरह उधार,

गली- गली भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार,

बंद होने लगा कारोबार,

नेता का फलता फूलता व्यापार,

प्रकृति का बंटाधार,

देश की साख का टूटता आधार,

चवन्नी बंद रुपया बीमार,

एक सौ तेईस करोड़ का हाहाकार,

जन्मते ही लाखों का उधार,

रक्षाके नाम पर खुले रहे कोषागार,

अन्धकार ही अन्धकार,

“अधूरा जिस्म” “सत्य का प्रहार”

“सत्यमेव जयते” या व्यापार,

हकीकत को जानो जागो मेरे यार,

फिर सोचो एक बार,

जनता बतीस अठाईस में जागीरदार,

वाह  री सरकार!

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