पौधा था छोटा था, लगता था अब गया तब गया, कभी बारिश की बुँदे सुहानी लगती थी, कभी लगता डूब गया डूब गया. हिम्मत करके टहनियां बढ़ाई, नयी कोपलें बिखराई, अब गगनचुम्बी वृक्षों को छूने लगी टहनियां, लगा मै भी खडा हो गया खडा हो गया. मगर पुष्पों के खिलने तक, अहसास नहीं हो पाया बड़ा होने का, फलों से लदते ही लगा मै बड़ा हो गया बड़ा हो गया, मै भूल गया वो छुटपन का अहसास, ना डर रहा कुछ खोने का ना उत्साह और कुछ पाने का, दे रहा हूँ आश्रय आने जाने वालों को और कुछ मीठे फल खाने को, क्योंकि मै वृक्ष हो गया वृक्ष हो गया.
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