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माँ! अहा! देखो ना आज मै सांस ले पा रहा हूँ.
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माँ! कितने दिनों से एक भ्रूण सा मै ज़िंदा था,
माँ! जैसे पिंजरे का कैदी सा कोई परिंदा था,
माँ! आज मै खुद को महसूस कर पा रहा हूँ,
माँ! आहा! आज देखो मै सांस ले पा रहा हूँ.
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माँ! लेटो ना कुछ देर और मेरी नींद टूट रही है,
माँ! खा भी लो ना कुछ मुझे भूख लग रही है,
माँ! उठोना ज़रा सुनो ना हम कुछ बाते करते हैं,
माँ! भला मेरे घर आने से पिताजी क्यों डरते हैं,
माँ! बताओ ना क्यों वो मुझे बार बार परखते हैं,
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माँ! तू कल ही से क्यों खामोश सी हो गयी है,
माँ! तेरी उदासी से मुझेभी फ़िक्र सी हो गयी है,
माँ!यूँ तनहासी मुझे लिए कहाँ चली जा रही हो,
माँ!सचमुच क्या तुम मुझे पा कर पछता रही हो,
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माँ! देखो ना बारबार इक शूल सी मुझे चुभती है,
माँ! बताओ ना क्या भला यह तुम्हे भी चुभती है,
माँ! देखो ना कितना मै बैचेन सा हुआ जा रहा हूँ,
माँ! अब क्यों ठीक से साँसे भी नहीं ले पा रहा हूँ,
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माँ! माँ! देखो मेरी साँसे क्यों बन्द हुई जा रही है,
माँ!मेरी चीखें तुभी भला क्यों नहीं सुन पा रही है,
माँ! अब मै तेरा साथ महसूस नहीं कर पा रहा हूँ,
माँ!शायद मर गया अब सांसभी नहीं ले पा रहा हूँ.
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माँ! तुझे ये बताना ही होगा क्यूँ ये मेरा ध्वंस था,
माँ! पिताजी से भी अधिक तेराही मुझ में अंश था,
माँ! छवि तुझ सी प्यारी थी साँसे तेरी आभारी थी,
माँ! शायद इसकी अब तुझसे आज सजा पा रहा हूँ,
माँ! अंश तो तेराही था आज पराया हुआ जा रहा हूँ,
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माँ! कई प्रश्न मेरे मन में उठते जो तुझसे पूछना था,
माँ! मुझेभी तुझ संग ही जीना था यूँ नहीं रूठना था,
माँ! तेरे समाज में अर्धांगिनी का अर्थ धेला होता है?
माँ! बेटियों के आने से क्या तेरा घर मैला होता है?
माँ! बेटियों बिना भी क्या तेरा ये संसार बच पायेगा?
माँ! क्या किसी भाई का भी विवाह यहाँ रच पायेगा?
माँ! तेरी दुनिया से अधूरा जिस्म लिए जा रहा हूँ मै,
माँ!आज सचमुच खुल कर सांस भी ले पा रहा हूँ मै,
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