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मानव

badalte rishte
badalte rishte
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कैसी विडंबना कैसा ये अनुशासन है.
मानव ही करता मानव पे शासन है,
क्या कहीं पशुओं में भी ऐसा होता है?
एक जागता रातभर एक बेफिक्र सोता है,
मानव को जन्म से ही यह पता होता है,
तभी जन्म लेते ही मानव शिशु रोता है.
मानव ही है जो यहाँ मानव पे हंसता है,
पर क्या किसी पशु को भी ये जंचता है?
पशु सदा उदरपूर्ति के लिए ही खाता है,
मानव उदर बांधकर भी धन कमाता है,
पर क्या बांधकर भी साथ ले जा पाता है?
पा जाता है जो मुफ्त, वही मजे उडाता है.
और पशु, जो खाता है वही कमाता है,
ना कुछ साथ लाता है ना ले जाता है.
मानव नित नए नए हसीं सपने सजाता है,
कहीं महल सपनों का घरोंदे कहीं बनाता है,
पशु जीवन भर मानव का साथ निभाता है,
मानव फिर भी यहाँ पशु बलि चढ़ाता है.
दो रोटी के लिए करता कितने आसन है,
कभी बनता रावण और कहीं दुशासन है,
कैसी विडंबना कैसा ये अनुशासन है.
मानव ही करता मानव पे शासन है,

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