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बिना चर्चा के वृद्धि!

badalte rishte
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bhatte(चित्र दैनिक भास्कर अखबार से साभार)
कल सुबह उठाते ही अखबार के मुखप्रष्ठ पर यह समाचार पढ़ा.थोड़ा झटका लगा फिर शांत, सबकी तनख्वाह बढती है अब विधायक सांसद भी तन्खैये हो गए हैं तो इनकी भी तनख्वाह यकीनन बढ़ेगी ही,पूरा अखबार पढ़ लिया. दिन बीत गया किन्तु क्या कारण था की मेरे मन से यह समाचार मिटने का नाम ही नहीं ले रहा है?अब ये नयी बात भी नहीं रह गयी क्योंकि अक्सर हम किसी भी प्रदेश में इसी तरह से विधायकों के वेतन वृद्धि के समाचार पढ़ते हैं कभी सांसदों के बिना किसी विरोध के वेतन और भत्तो में वृद्धि के समाचार पढ़ते हैं.फिर,शायद इसलिए की इस बड़े से शीर्षक के समाचार के साथ ही एक छोटे से शीर्षक में एक और समाचार भी है की “कर्मचारियों को चार साल से इन्तजार” क्या यही बात मन को बैचेन कर रही है या की इन बढे हुए वेतन का असामान्य प्रतिशत (मुख्यमंत्री जी की वेतन वर्द्धि १७७%) मन से इस बात को मिटने नहीं दे रहा है. कोई बात तो है.
काफी मनन करने पर एक और बात मन में उपज कर आयी की क्या इनके वेतन का निर्धारण जब इन्हें ही करना है तो फिर ये सौ, दो सौ या एक हजार प्रतिशत भी बढौतरी कर लें तो कोई क्या कर सकता है. तब फिर किसी को इस बात का जवाब देने में भी कोई कठिनाई नहीं होगी की इनके पास हजारों करोड़ की संपत्ति कहाँ से आयी. आप सोचते होंगे की क्या कभी ऐसा हो सकता है भला? मै भी ऐसे ही सोचता हूँ. हमारे चुने हुए सम्माननीय क्या ऐसा कर सकते हैं. किन्तु जब मुझे संसद में बैठे १६२ माननीयों के आंकड़े की याद आती है तो फिर यह असंभव भी मुझे संभव नजर आने लगता है. क्योंकि जो आंकडा संसद में बैठे माननीयों का है विधानसभाओं में उससे कम की कोई गुंजाइश भी नहीं है और यदि चुनाव सुधार जैसी बातों पर यदि बातें ही होती रही तो यह आंकड़ा और भी मजबूत होता जाएगा. तब यदि १००० प्रतिशत वेतन बढौतरी का प्रस्ताव आया तो वह भी बिना बहस के मात्र १५ मिनटों में ही पास हो जाएगा इस बात की पूरी शक्यता है.
जब सारे सरकारी कर्मचारी अधिकारियों की तनख्वाह बढाने के लिए समितियों का गठन किया जाता है उनकी सिफारिशों पर कई वर्षों तक अमल भी नहीं हो पाता फिर क्यों नहीं विधायक सांसदों की तनख्वाह बढौतरी के लिए कोई समिति गठित की जाती. आखिर पैसा जनता का ही तो है चाहे कर्मचारियों को तनख्वाह देने की बात हो या फिर विधायक सांसदों को. जो मेरे दिल में चुभता है क्या वह आप के भी मन में चुभता है?
(१-अप्रेल मुर्ख दिवस पर विशेष)

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