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अभेद्य है ये दुर्ग अभी न सेंध से प्रहार कर I
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II
प्रहार कर प्रहार कर……..
धन की बहुत लालसा बिके हुए जमीर हैं.
तन के महाराज सभी मन के ये फ़कीर हैं.
विवश अब नहीं है तू , देख तो पुकार कर
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II
प्रहार कर प्रहार कर……..
कौम अब पुकारती न और इन्तजार कर,
रक्त से बलिदान के सींचित इस जमीन पर,
मिट सके भेद सभी जीवन को बलिदान कर
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II
प्रहार कर प्रहार कर……..
नित शाम ढले भेडिये अब झुण्ड में है आ रहे
नित कृत्य दानवों से करके कौम को लजा रहे
दूध की है लाज तुझे अब सोच ना विचार कर
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II
प्रहार कर प्रहार कर……..
मिट गए सिंदूर कई जो सत्य को पुकार कर
गर्व उन्हें फिरभी यहाँ इस देश को निहार कर
लानते ना दे अब इस ढ्कोसली सरकार पर,
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II
प्रहार कर प्रहार कर……..
हजारों द्रष्टियां लगी इस तेरे जन करोड़ पर
गरीब रक्त बेचते यहाँ अंग अंग मरोड़ कर
बुझ गए है दीप कई भूख से चीत्कार कर
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर
प्रहार कर प्रहार कर……..
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