आज मै जल्दी जल्दी अपना काम निबटा के ऑफिस से घर आया क्योंकि आज आम बजट का दिन था, उत्सुकता रहती है क्या सस्ता हुआ क्या महँगा हुआ और ख़ास तो इस बात को जानने की जल्दी रहती है कि वित्त मंत्री जी ने आयकर में क्या कुछ गुंजाइश कि है.क्योंकि प्रतिवर्ष वित्तीय नया सत्र जैसे बाद में शुरू होता है किन्तु टैक्स कि गणना तो बजट आने के बाद से ही शुरू हो जाती है.ताकि टैक्स कि किश्तें अप्रेल से ही शुरू कि जा सकें.बस यही कुछ सोचता हुआ मै जल्दी घर पहुंचा. द्वार पर दस्तक दी किन्तु जैसे ही पत्नी ने द्वार खोला तो मै एकदम चौंक गया मैंने पुनः एक बार जांचा कि मै अपने ही घर में तो हूँ. क्योंकि आज कई महीनो बाद मैंने पत्नी के बालों को कसकर बांधे हुए देखा और इतने दिनों से खुले बाल वाले चहरे को देखते रहने से मै एकाएक उसे पहचान ही नहीं सका.सकपकाया से मै उसके पीछे घर में प्रविष्ट हुआ अब मेरा ध्यान बजट से हटकर पत्नी के बंधे बालों पर था.सो मैंने पूछ ही लिया कि “आज अचानक क्या हो गया कि प्रिये तुमने अपनी खुली जुल्फों को कैद कर दिया.” उसने बताया कि “मैंने मन्नत कि थी जब तक सचिन सौंवा शतक नहीं बनाएगा तब तक मै केश नहीं बांधुंगी”. मै हतप्रद था निरुत्तर सा सोचता रहा कि क्या होता यदि सचिन बीच में ही संन्यास ले लेता.खैर अंत भला तो सब भला, फिरभी लगा कि क्या कभी मेरी जीवन संगिनी को यह ख़याल नहीं आया कि मेरे इतने वर्षों से एक ही पद पर काम करते हो गए हैं तो कभी ऐसा प्रयोग मै इनकी पदोन्नति के लिए भी करूँ. हो सकता है वह मेरी सेवानिवृत्ति कि उम्र नजदीक आने से डर गयी हो. चलो जाने भी दो मैंने फ़टाफ़ट हाथ मुँह धोये और टीवी चालु करके बैठ गया देखने के लिए कि आज बजट में क्या हुआ है. किन्तु मै पागलों कि तरह चेनल बदलता ही गया किन्तु कहीं भी बजट से सम्बंधित समाचारों का कोई प्रसारण नहीं हो रहा था. हर जगह सचिन और उसका सौंवा शतक ही हाजिर था. कोई उनके गुरूजी का साक्षात्कार पेश कर रहा था तो कोई उनके बनाए एक से ले कर सौ तक के सारे शतकों कि जानकारी मय अंश के प्रसारित कर रहा था. थक हार कर मैंने तय किया कि स्क्रीन के निचे चल रही समाचार पट्टी पर ही पढ़ कर संतोष कर लिया जाए.देखा तो मालुम हुआ कि आयकर अब दो लाख रुपये के बाद से लागू होगा सोचा चलो दो हजार रुपये का लाभ होगा किन्तु जैसे ही मेरी नजर सेवा शुल्क पर पड़ी तो समझ आया कि इस एक दो हजार कि छुट के बदले उससे कई गुना अद्रश्य टैक्स लगा दिया है. कुछ निराशा दूर करने के उद्देश्य से मैंने पत्नी से कहा कि क्या कुछ कॉफ़ी मिलेगी या नहीं तो उसने मेरे मुह से शब्द निकलने से पहले ही मिठाई ला कर यह कहते हुए दी कि ” यह खा लो कॉफ़ी अभी बना कार देती हूँ.” मैंने जिज्ञासावश पूछ लिया कि आज ये मिठाई किस ख़ुशी में तो उसने बताया कि “पडोसी के यहाँ से आयी है सचिन के सौ शतक हो जाने कि ख़ुशी में.” मै मन ही मन सोचने लगा कि आखिर मुझे ही क्यों बजट कि चिंता है जब सब सचिन के शतक की ख़ुशी में खुश हैं. चलो तब तक पत्नी ने कॉफ़ी भी ला कर दे दी थी. तभी एक समाचार चेनल ने बजट पर चर्चा शुरू की किन्तु मै सुन ही नहीं पा रहा था क्योंकि बाहर से ढोल ताशे की आवाज से घर में भी सुन पाना मुश्किल हो रहा था, मैंने बाहर आकर देखा तो कालोनी के ही लडके रंग गुलाल उड़ाते, नाचते गाते चले जा रहे हैं. मै सोच में पड़ गया की अब तो होली की सारी गैर निकल चुकी है फिर ये क्या है, तभी मेरी नजर पीछे चल रहे ठेले पर गयी जिसमे सचिन की तस्वीर रखी हुई थी अब मै पूरा माजरा समझ गया. यह भी समझ गया की जनता जानती है की जिसका हम कुछ कर ही नहीं सकते उसकी व्यर्थ चिंता से क्या है ख़ुशी के जो पल मिले हैं उसी को जी लें.
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