ऐसा कम ही होता है की जब फागुन के आने तक शिशिर भी मौजूद रहे. किन्तु इस बार जब फागुन आया तो उसने देखा बसंत उदास सा बैठा है और शिशिर भी वहां पर मौजूद है. फागुन ने बसंत को इस दशा में देख पूछा “क्या बात है मित्र प्रति वर्ष तो तुम मेरा चहकते हुए स्वागत करते थे किन्तु इस वर्ष तो तुम उदास दिख रहे हो तुम्हारे सारे चटख रंग इस बार गायब हैं.” ” क्या करूँ मित्र इसबार एक तो शिशिर ने मुझे अपने रंगों को फैलाने ही नहीं दिया स्वयं ही पसरा रहा कभी आता कभी जाता जैसे जाने का वक्त तो हो गया किन्तु मन नहीं हो जाने का.” बसंत ने कुछ रुआंसे अंदाज में कहा. “क्यों मित्र शिशिर तुम क्यों हठ किये बैठे हो जब सभी तुम्हारे जाने की प्रतीक्षा में बैठे हैं, वैसे भी तुम्हे मालुम है की तुम मेरी तपन नहीं सह सकते.” फागुन बोला. “हाँ मित्र तुम सही कहते हो,किन्तु इस बार मुझे भ्रम हो गया था, मुझे लगा कि बसंत मुझसे पहले ही आ गया इसलिए मैंने प्रकृति से कुछ दिन का और एक्सटेंशन मांग लिया था, इसी कारण रुका हुआ हूँ.” शिशिर बोला. ” मगर तुम्हे ऐसा भ्रम कैसे हो गया, जबकि बसंत तो हर वर्ष तुम्हे रंगों भरी विदाई देने ही आता है.”फागुन आश्चर्यचकित होते हुए बोला. ” मित्र इस वर्ष पुरे उत्तर भारत में चुनाव होने से इन नेताओं के नित नए रंग देख कर मै तो दंग रह गया मुझे लगा कि शायद बसंत ही है. किन्तु अब जाकर समझ आया कि मै इस देश कि जनता कि तरह ही इन नेताओं के हाथों छला गया हूँ. शायद तुम होते तो तुम भी मेरी तरह छले जाते. चुनाव के वक्त इन नेताओं के बदलते रंग से बच पाना मुझे तो असंभव ही लगता है.”शिशिर ने लम्बी सांस लेते हुए कहा. इतने में बसंत बोला ” हाँ मैंने भी कई नेताओं को इस दल से उस दल भागते देखा है. मगर मुझे उससे क्या? मै तो दुखी हूँ इस बात से की मेरे आगमन पर जहां सब बसंती रंग में रंगे नजर आते थे सभी श्वेत वस्त्रों में लिपटे नजर आ रहे हैं.मेरा तो दम ही बैठा जा रहा है.किसी की भी जबान पर माँ सरस्वती नजर नहीं आ रही सबकी जबान पर वोट वोट और वोट ही दिखाई दे रहा है.” ” अरे मै तो जाते जाते थम सा गया और एक ही जगह पर जम सा गया जब मैंने गाड़ियां भर भर के रुपया यहाँ से वहां दौड़ते देखा. तब मैंने महसूस किया की रुपये की गर्मी क्या होती है उन गाड़ियों में बैठे किसी व्यक्ति को मेरे होने का अहसास ही नहीं हो रहा था.” शिशिर कुछ सहम कर बोला. “हाँ मै भी आश्चर्यचकित रह गया जब मैंने इन नेताओं को महिलाओं के सामने दोनों हाथ जोड़े वोट की भीख मांगते देखा वरना तो सदैव इनकी जीभ महिलाओं को देखते ही लपलपाने लगती थी.”बसंत बोला. “चलो अब मै आगया हूँ तुम दोनों जाने की तैयारी करो.मै इन नेताओं को अच्छे से जानता हूँ. उधर वोट का ठप्पा लगा की इनके सारे वादे कचरे के ढेर में जायेंगे, मतदाता की ऊँगली में अमिट स्याही का निशान लगते ही ये अपने जेहन से उसे मिटा देंगे. और चुनाव जीत गए तो आज द्वार द्वार जाने वाले नेता को कल उनके द्वार पर खोजने जाओगे तो भी उनका मिलना मुश्किल होगा.” कहते हुए फागुन ने दोनों को विदा किया और पलट कर देखा तो लोग बिना किसी चिंता के उसी प्रकार रंगों में खेलते दिखे जैसे हर वर्ष दिखते हैं.
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