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बात बात पर देश बेचने की ये करते क्यों तैयारी है,
लोकशाही की सत्ता पर काबिज सरकार नहीं व्यापारी हैं.
तोल मोल के बोल के देखो जनता को भरमाते हैं,
खेल खेल के खेल में देखो कितना नोट कमाते हैं,
भर भर के बोरों में देखो गैरों तक पहुंचाते हैं,
देश के उजले धन को कैसे काला धन बनवाते हैं.
उचित अनुचित का भेद नहीं केवल भ्रष्टाचारी है
लोकशाही की सत्ता पर…………………………………..
शाम दाम दंड भेद दिखाकर वोट खरीदे जाते हैं.
इन्ही सहारों से देखो फिर साधू को पिटवाते हैं.
और करोड़ों की जन संपत्ति बन्दर बाँट के खाते हैं.
आते हैं लंगोट लगा कर सूट पहनकर जाते हैं.
लोकतंत्र के मंदिर में बैठे धूर्त और भ्रष्टाचारी हैं.
लोकशाही की सत्ता पर…………………………………..
सुरा और मदिरा का देखो हर दिन भोग लगाते हैं.
मदमस्ती में दखो इनको क्या करतब कर जाते हैं.
चलते हैं ये संभल संभल कर कदम बहक ही जाते हैं.
लोकतंत्र के मंदिर में ये घ्रणित चलचित्र चलाते हैं.
जनता की सत्ता में घुस बैठे पापी और व्याभिचारी हैं.
लोकशाही की सत्ता पर………………………………………
जांति पांति के नाम पे देखो जनता को बंटवाते हैं.
धर्म धर्म में भेद बताकर जन जन को बहकाते हैं.
मन के काले और विषैले ऐसी तरकीब लगाते हैं,
अपने हित की खातिर देश में दंगे खूब कराते हैं.
बहक गए जो तुम तो समझो फिर इनकी ही बारी है.
लोकशाही की सत्ता पर ………………………………
लोकशाही की सत्ता पर काबिज सरकार नहीं व्यापारी हैं.
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