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मतदान की प्रक्रिया में अन्ना फैक्टर कितना प्रभावी सिद्ध हो सकता है?

badalte rishte
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                                           अन्ना तुम आंधी हो देश के पहले गांधी हो मेरे जीवन के. क्योंकि मो.क.गांधी को तो मैंने देखा नहीं सिर्फ उनको पढ़ा है उनकी कुछ डाक्यूमेंट्री फिल्मे देखी हैं. एक जीवट इंसान सबके साथ इन्साफ की चाह रखने वाला. क्या उनका विरोध नहीं हुआ? अवश्य हुआ और उसी का नतीजा है की आज उस एक देश के तीन तुकडे हमारे सामने हैं. यदि उनकी बात मानकर उनकी सलाह से निर्णय हुए होते तो शायद परिस्थितियाँ भिन्न होतीं.खैर छोडो भी पुरानी बातें है लकीर पीटते रहने से कुछ होने वाला नहीं है. चिंता अब बीते कल की नहीं आने वाले कल की है. जहां हम देश और प्रदेश के और तुकडे होने से बचाने के लिए प्रयत्नशील हैं. क्योंकि विकास की ढपली के पीछे का राग बड़ा बेसुरा है क्योंकि वहां वोट की खिचड़ी है जो अभी पक रही है. शायद आप भी पढ़ कर पकने लगे होंगे की अन्ना राग की जगह ये कौनसा राग छेड़ दिया है.
                                                                दरअसल मै देश में अन्ना का खुद का कितना प्रभाव है ये बताना चाहता था क्योंकि तांत्रिक की जितनी ख्याति होगी उतने लोग उसकी ओर आकृष्ट होंगे.वरना तांत्रिक फेल उसके सारे तंतर फेल. लोगों ने अन्ना के आन्दोलन का काफी समर्थन किया है.ये एक एतिहासिक आन्दोलन था मै कहूँ की एक वक़्त तो ऐसा लगता था की जैसे पूरा देश ही अन्ना की भाषा बोलने लगा है. तो गलत नहीं होगा. यदि उस वक्त चुनाव होते तो शायद हमारी सरकार में बैठी राजनातिक पार्टी अपने कार्यालय तक सिमट जाती.इसका उदाहरण भी हमने उस वक्त हुए हरियाणा की एक सीट के चुनाव में देखा है. किन्तु अब वो बात नहीं रही. अब वो बात नहीं रही? सभी को यह लगता होगा की ऐसा क्यों? तो इसका सीधा सा कारण है की हमारे राजनेता भी कोई कम चमत्कारी तांत्रिक नहीं हैं. इनके तंत्र के आगे सारे तंत्र फेल हो जाते हैं और वही हुआ. इन्होने नित नयी नयी तंत्र क्रिया करके लोगों के मन से अन्ना के भुत को उतारा और जब इन्हें लगने लगा की हाँ अब भुत उतर चुका है तो फिर इन्होने वही छल जिसके ये जगत गुरु हैं. फिर शुरू कर दिया.
                                                 फिरभी जनता भले ही अन्ना के मन्त्र को भूल गयी हो उसकी धुन अभी भी उनकी कानों में गूंज रही है. उसका असर तो अवश्य ही होगा किन्तु नतीजों में हम वह महसूस कर पायेंगे या नहीं ये नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसके पीछे कारण है.अन्ना का मन्त्र था की साफ़ छवि वाले उम्मीदवार को विजयी बनाओ. मतदाता यहीं भ्रमित हो जाता है की फिर वोट किसको दें? और भ्रमित स्थिति में वह सरकार को छोड़कर अन्य दल के उम्मीदवार को वोट देगा जो उसे ठीक लगे. इस कारण यह मालुम करना कठिन हो जाएगा की अन्ना फेक्टर का क्या असर हुआ.यदि अन्ना की ओर से निर्देशित होता की फलां दल को वोट करो तो हम उस फेक्टर का स्पष्ट आंकलन कर पाते.
                                                              दूसरा कारण अन्ना का इस वक्त खामोश रहना, चाहे अस्वस्थता के कारण ही क्यों ना हो.लोगों को गलत सन्देश दे रहा है.इसका भी नकारात्मक प्रभाव होगा. मैंने पहले ही कहा है की हमारे राजनेता बड़े तांत्रिक है, उन्होंने संसद का शीतकालीन सत्र ऐसे सस्पेंस पर ख़त्म किया है की अन्ना टीम की जबान बंद हो गयी है. वे जहां खुलकर सरकार विरोधी मत का प्रचार करने की तैयारी करके बैठे थे अब मुश्किल में हैं. क्योंकि जनता तो सूर्योदय और सूर्यास्त को ही ठीक मानती है क्योंकि उसको प्रथ्वी का घूमना दिखाई ही नहीं देता वह तो जो देखती है उसी को सच मानती है.
                                                             एक कारण और भी है टिव्ही जो की इस वक्त पूरी तरह से केंद्र सरकार के दल के पक्ष में बोल रहा है क्यों ऐसा कर रहा है? ये तो लोकसभा चुनाव में यदि कोई दूसरा दल विजयी हो कर आया तो मालुम पडेगा. मगर फिलहाल तो इसका जो समर्थन मिलने की उम्मीद थी वह खत्म है अन्ना मिशन में टिव्ही का काफी अहम् रोल रहा है.और इस वक्त उसका समर्थन ना मिलना भी इस फेक्टर को कमजोर करेगा.
                                                         इसलिए मेरा मानना है की अन्ना फेक्टर का प्रभाव तो होगा काफी अच्छा होगा किन्तु हमारी उम्मीद से कुछ कम होगा और सिर्फ यह सरकार के विरुद्ध ही आंकलित किया जा सकेगा. इसको विशेषज्ञ अपनी अपने तरह से आंकलित करेंगे जिससे जनता में भ्रम ही रहेगा की वाकई इसका कितना प्रभाव हुआ है.

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