सर्व प्रथम सभी को यह जान लेना बहुत जरूरी है की किसी भी बड़े आन्दोलन में अच्छा बुरा वक्त आता ही है.लम्बी लड़ाई में हर दिन हमारी ही जीत हो यह हो नहीं सकता किन्तु अंततः सत्य की जीत निश्चित है.सिर्फ एक दिन की हार को हम सम्पूर्ण आन्दोलन की विफलता नहीं कह सकते और न ही इस विफलता से आन्दोलन की प्रासंगिकता पर कोई असर होने वाला है. भ्रष्टाचार के खिलाफ जन आन्दोलन की प्रासंगिकता तब तक हर दिन है जब तक की भ्रष्टाचार समाप्त नहीं हो जाता. हमने देखा की अन्ना जी के सांकेतिक अनशन के बाद जब दुबारा अन्ना ने आमरण अनशन के नारे के साथ अनशन आरम्भ किया तो उसको एतिहासिक जन समर्थन हासिल हुआ. किन्तु ये जन समर्थन क्यों मिला? क्या इसके पीछे सिर्फ भ्रष्टाचार से पीड़ित जनता का आक्रोश ही था? नहीं देश की जनता भ्रष्टाचार से तो पीड़ित है ही,अन्ना के एक दिवसीय अनशन में आये जन सैलाब ने देश की जनता में उम्मीद की किरण जगा दी थी और एक मुख्य कारण था अन्ना के आन्दोलन के पहले बाबा रामदेव के आन्दोलन को दमनपूर्वक सरकार द्वारा कुचल देना. इस घटना से जनता मन ही मन आंदोलित हो रही थी और उसी का परिणाम था की अगस्त के आन्दोलन को एतिहासिक सफलता मिली. हर दिन इतिहास नहीं रचा जा सकता. अन्ना ने शीतकालीन सत्र में भी जन लोकपाल बनाने के लिए सरकार पर दबाव बनाने का निर्णय लिया. जो की जरूरी भी था किन्तु क्यों वह सफल नहीं हो पाया? क्या जनता की भ्रष्टाचार से मुक्त होने की इच्छा ख़त्म हो गयी थी? नहीं, ऐसा कुछ नहीं था. एक बहुत बड़ा वर्ग अन्ना से इस बात के लिए खफा था कि जब अगस्त के आन्दोलन में सरकार दबाव में थी तभी उन पर और दबाव डाल कर बिल क्यों पास नहीं करवा लिया गया. दूसरा कारण था कि सरकारी तंत्र द्वारा यह प्रचारित करना कि हम जब बिल पास करवा ही रहे हैं. तब इस आन्दोलन कि प्रासंगिकता क्या है. तीसरा बड़ा कारण यह भी रहा कि आन्दोलन दो जगहों पर होने और अन्ना का दिल्ली के बजाय मुंबई में होने से जनता असमंजस में पड गयी और आन्दोलन कमजोर पड गया ऊपर से अन्ना के स्वास्थ्य ने रही सही कसर भी पूरी कर दी.थोड़ा कुछ असर सरकारी अवकाश के कारण लोगों का बाहर घुमने जाना.अन्ना द्वारा तिन दिवसीय आन्दोलन को दो ही दिन में समेत देना कोई कमजोरी वाली बात नहीं थी एक सही निति थी क्योंकि अन्ना के बिना तो यह आन्दोलन बिलकुल ही बोठा हो जाता और यदि अन्ना को अस्पताल में भर्ती रखकर यह आन्दोलन चलाने का प्रयास किया जाता तो अवश्य ही यह विफल हो जाता. कांग्रेस अपने १२५ वर्षों का उदाहरण देती है किन्तु वह कौनसी कांग्रेस थी? क्या यही कांग्रेस थी? क्या उस कांग्रेस ने इस कांग्रेस को अलग नहीं कर दिया था? यह तो कांग्रेस(I) है जिसमे (I ) कि प्रासंगिकता सदैव बनी रही. जब श्रीमती इंदिरा गांधी थी तो उन्होंने नयी कांग्रेस अपने नाम से ही बना ली थी और तभी चुनाव चिन्ह भी लिया था पंजा लोग इस पंजे का अर्थ नहीं समझ सके मेरे विचार से इसका अर्थ था पांच पीढियां अर्थात इस दल में शामिल लोगों को इनकी पांच पीढ़ियों तक गुलामी करनी है.खैर, मै बात ( I ) कि प्रासंगिकता कि कर रहा था जब श्री राजिव गांधी आये तो इस ( I ) का मतलब हो गया (आई) अर्थात माँ सही है माँ कि पार्टी है. अब आजकल इसको ज्यादा प्रचारित नहीं किया जाता सिर्फ कांग्रेस बोला जाता है क्योंकि सब जान जायेंगे कि अब यह ( I ) किस तरह प्रासंगिक है. यदि यह ( I ) इनकी पांच पीढ़ी तक प्रासंगिक है तो अन्ना का आन्दोलन भी एक छोटी सी विफलता से अपनी प्रासंगिकता नहीं खो सकता यही भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाया गया आन्दोलन इनकी पांच पीढ़ियों को जेल में जाने तक प्रासंगिक ही रहेगा.
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