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कुछ दिन पहले अधिकतर केंद्रीय मंत्रियों ने अपनी संपत्ति का विवरण पेश किया,
कोई १३ करोड़, कोई ४३ करोड़ और कोई २६३ करोड़ कुछ ही थे जो करोड़ से चंद कदम के फासले पर हैं. मै चाहता था की सिर्फ आज की संपत्ति ये न बताएं बल्कि जनता को फंडा बताएं की किस तरह से इतना रूपया कमाया जाता है.जब ये मंत्री मोहोदय प्रथम बार जनता के बीच से संसद गए थे उस दिन इन की संपत्ति कितनी थी, उसके बाद ब्योरेवार संपत्ति बढ़ने की जानकारी हमारे युवाओं को लगाना चाहिए ताकि आज जल्दी पैसा कमाने के चक्कर में विदेशों की और भागता हमारा युवा यहीं रहकर देश की सेवा करेगा.
एक बार इसका खुलासा एक पूर्व मुख्यमंत्री ने इन्काम टैक्स वालों के द्वारा दबाव देने पर कुछ साल पहले किया था.उससे प्रभावित होकर मेरे एक मित्र की वृद्ध माँ ने उसका पूरा घर गोबर के कंडों से भर दिया था. जब उनको समझाया गया की अम्मा लाखों रुपये गोबर के कंडे बेचकर नहीं कमाए जा सकते तो उनका उत्तर था तो क्या एक महिला झूठ बोलेगी?
फिर दो दिन पहले दिल्ली की विधायिका ने सारे विधायकों के वेतन भत्ते में १००प्रतिशत वृद्धि कर दी. मुझे नहीं याद आता की मेरे ३२ वर्षों के कार्यकाल में मैंने कभी एक मुश्त १०० प्रतिशत वृद्धि पाई हो. अभी छठवें वेतनमान को ही लें जिसको बहूत अच्छा बताया जाता है. इसमे भी सालाना वेतन वृद्धि ३ प्रतिशत है और पदोन्नति पर भी ३ प्रतिशत ही है.
अन्नाजी कहते हैं देश जाग गया है. मुझे लगता है nahiकुम्भाकरनी नींद में सोनेवाला ये देश अभी बिलकुल भी नहीं जागा है.इसने सिर्फ पलकें झपकी और हम समझे की देश जाग गया है. इसे पूर्ण रूप से जाग्रत होना पड़ेगा. उस पांच वर्षों के लिए दी जाने वाली मीठी बोली में जो नींद की गोली है उसको गटक ने से पहले कई बार सोचना होगा. हमारे विभाग में सालाना अपनी संपत्ति की जानकारी देनी होती है लगभग प्रतिवर्ष ही उत्तराधिकारी का नाम जांचने की सलाह दी जाती है.क्या संसद और विधायकों के लिए पांच वर्षों में एक बार भी हमसे इस तरह पूछा जाता है? वोट टु रिजेक्ट के मसले पर कहा जाता है की हमारे यहाँ वोटिंग का प्रतिशत ही ४० के आसपास होता है तो फिर कैसे इसका निर्धारण करें. क्या कभी चुनाव आयोग ने उन लोगों से सरसरी जानकारी भी चाही, जो साठ प्रतिशत हैं, की आपने किस मजबूरीवश अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं किया?
जो लोग सरकारी कार्यालयों में कार्य करते हैं वो भलीभांति जानते होंगे की सरकारी कर्ज को वसूलने के लिए सरकार कितनी सख्त शर्तें रखती है ताकि कोई पैसा हजम करने की कोशिश ही न करे इसमे भविष्यनिधि से वसूली का भी प्रावधान होता है. बार बार केजरीवाल को कहा जा रहा है की आपने कर्ज लिया था जो ८० हजार से डेढ़ लाख हो गया है आप उसे चुकाइए. ये कर्ज डेढ़ लाख किसकी गलती से हुआ है?
और अंत में मुझे याद आता है टीवी पर कहा किसी का वो वाक्य “ये भी कोई दूध के दूध के धुले नहीं है” इससे मुझको स्मरण आता है वर्षों पहले रेलवे में कार्यरत हास्य कलाकार कुलकर्णी बंधू का वो हास्य जिसमे पेशी से पहले एक चोर वकील से पूछता है की ” मै कोर्ट में क्या कहूँ” तो वकील कहता है “तू कुछ मत बोलना सब मै संभल लूँगा, सिर्फ हाँ या न करना” कुछ देर बाद चोर कहता है “नहीं जमेगा वकील साहब” वकील रौब से कहता है “मै वकील हूँ या तू,पूछ कुछ भी मै हाँ ना में जवाब दूंगा” और चोर पूछता है “वकील साहब आपने चोरी करना छोड़ दिया क्या?”
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