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एक सीधी सी बात थी की आप देश से भ्रष्टाचार मिटाना चाहते हो या नहीं? सरे देश की जनता ने तो खुलकर कहा, हाँ हम देश से भ्रष्टाचार पूरी तरह से मिटाना चाहते हैं.मगर न जाने इन सांसदों को ये बात क्यों नागवार गुजारी. साफ न करके न तो ये जनता से बैर ले सकते थे न ही अपनी करनी पे बैठ के रो सकते थे. नित नए बहाने बनाने लगे, सुन कर आश्चर्य होता था और गुस्सा तो न पूछो.
क्यों इन सांसदों को बार बार ये कहना पड़ रहा था की हमारा सम्मान करो?और किससे? उस जनता से जिसने तुमको देश के सर्वोच्च मंदिर में भेजा है अपने हितों की रक्षा के लिए. संसद का किसी ने अपमान नहीं किया. किसी ने संविधान के विरुध्द जाने की बात नहीं की.
दरअसल जनता ने इन्हें आइना दिखा दिया और उसको देखकर ये डरने लगे थे,ये खुद की शक्लें नहीं पहचान पा रहे थे.बारह दिन लग गए तब जा कर इनको विश्वास हुआ की ये हमारा ही चेहरा है. कितनी बार मल मल कर धोया होगा इन्होने अपने चहरे को? फिरभी कई सांसद अपने चहरे पहचान नहीं पा रहे हैं.
आखिर मान ही गए.देश में हुए एतिहासिक आन्दोलन के आगे, सत्य के आगे आखिर झुकना ही पड़ा.मै तो निराश हो गया था. मगर अन्ना को हौसला देखकर लगता है की हाँ वो एक वीर सिपाही हैं देश के . देश हमारा भी है देश तुम्हारा भी है तुम हमेशा जीवित नहीं रहोगे. भ्रष्टाचार नहीं रोकोगे तो तुम न सही तुम्हारी अगली पीढ़ी उसको भोगेगी. सांसद इस बात को समझेंगे यही आशा है.
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